19-12-79  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

सहज याद का साधन - स्वयं को खुदाई खिदमतगार समझो

बाप-दादा आज अपने सहयोगी वा सहजयोगी बच्चों को, जिनका नाम ही है - खुदाई खिदमतगार, ऐसे बच्चों को देख सदा हर्षित होते हैं। खुदाई खिदमतगार अर्थात् जो खुदा व बाप ने खिदमत अर्थात् सेवा दी है उसी सेवा में सदा तत्पर रहने वाले। बच्चों को यह भी विशेष नशा होना चाहिए कि हम सभी को खुदा ने जो खिदमत दी है, हम उसी सेवा में लगे हुए हैं। कार्य करते हुए, जिसने कार्य दिया है, उसको कभी भूला नहीं जाता। चाहे स्थूल कर्त्तव्य भी करने हो लेकिन यह कर्मणा सेवा भी खुदाई खिदमत है। डायरेक्ट बाप डायरेक्शन दिये हैं तो कर्मणा सेवा में भी यह स्मृति रहे कि बाप के डायरेक्शन के अनुसार कर रहे हैं तो कभी भी बाप को भूल नहीं सकेंगे। जैसे कोई विशेष आत्मा से कोई विशेष कार्य मिलता है - जैसे आज कल का प्रेजीडेन्ट अगर किसी को कहे कि तुम्हें यह कार्य करना है तो वह व्यक्ति उस कार्य को करते हुए प्रेज़ीडेन्ट को कभी नहीं भूलेगा। सहज और स्वत: ही उसकी याद रहेगी। न चाहते हुए भी सामने वही आता रहेगा। ऐसे आप सब को यह कार्य ऊंचे-से-ऊंचे बाप ने दिया कार्य करते हुए देने वाले को भूल कैसे सकेंगे? तो सहज याद का साधन है - सदा स्वयं को खुदाई खिदमतगार समझो।

पत्ते-पत्ते को भगवान हिलाता है - इस गायन का रहस्य

भक्ति मार्ग में बिना समझ के भी कहावत है और उनकी मान्यता भी है अगर पत्ता भी हिल रहा है उस पत्ते को हिलाने वाला भी बाप है। लेकिन इस रहस्य को आप जानते हो कि उन पत्तों को बाप नहीं हिलाता लेकिन ड्रामा अनुसार यह सब चल रहा है। यह गायन कोई स्थूल पत्तों से नहीं लगता, लेकिन कल्प वृक्ष के आप सब पहले पत्ते हो। संगमयुगी आप सब गोल्डन एजेड पत्ते जो बाप द्वारा लोहे से पारस बन गये हो, इन चैतन्य पत्ते को इस समय डायरेक्ट बाप चला रहे हैं। बाप की डायरेक्शन है कि संकल्प भी जो बाप का हो, वह आपका संकल्प हो। हर संकल्प बाप-समान, हर बोल बापसमान, हर कर्म बाप-समान हो अर्थात् इसी श्रीमत के आधार पर आप सभी का संकल्प चलता है। तो इस समय आप सभ् पत्तों को श्रीमत के आधार पर हर समय बाप चला रहे हैं। पत्ते-पत्ते को हिला रहा है अर्थात् चला रहा है। अगर श्रीमत के सिवाए संकल्प भी करते हो तो वह व्यर्थ संकल्प हो जाता है तो यह जो कहावत है, वह भक्ति के समय की नहीं लेकिन संगम समय का गायन है। तो आप सभी पत्ते बाप की श्रीमत पर ही हिल रहे हो अर्थात् चल रहे हो ना। ऐसे ही चल रहे हो ना? चलाने का काम भी बाप का, फिर भी इतना मुश्किल क्यों लगता है? बोझ सारा बाप ने ले लिया फिर भी सदा उड़ते क्यों नहीं हो? हल्की चीज़ तो सदा ऊपर उड़ती है। इतने हल्के जो हर संकल्प भी बाप चलायेंगे तो चलाना है। जैसे चलायेंगे वैसे चलेंगे यह सभी का वायदा है और बाप की गारन्टी है कि चलायेंगे। तो बुद्धि को क्या आर्डर दिया हुआ है? बुद्धि को बाप ने क्या कार्य दिया है - उसको जानते हो ना? बुद्धि के बैठने का स्थान बाप के पास में है। कर्त्तव्य विश्व सेवा का है। तो जो वायदा किया है जहाँ बिठायेंगे जैसे चलायेंगे वैसे चलेंगे। शरीर से या बुद्धि से? तन के साथ मन भी दिया है या सिर्फ तन दिया है? तन और बुद्धि से जहाँ बिठायें, जैसे चलायें, जो करायें, जो खिलायें, वहीं करेंगे - यह वायदा किया हुआ है ना? तो बुद्धि का भोजन है - शुद्ध संकल्प। जो खिलाएं वही खायेंगे - यह वायदा है तो फिर व्यर्थ संकल्प का भोजन क्यों करते हो? जैसे मुख द्वारा तमोगुणी भोजन, अशुद्ध भोजन नहीं खा सकते हो, ऐसे ही बुद्धि द्वारा व्यर्थ संकल्प वा विकल्प का अशुद्ध भोजन कैसे खा सकते हो? जो खिलायेंगे, वह खायेंगे फिर तो यह राँग हो जाता है। कहना और करना समान करने वाले हो ना? तो मन बुद्धि के लिए सदा यह भी वायदा याद रखो तो सहज योगी बन जावेंगे। बाप ने कहा और किया। अपना बोझ अपने ऊपर न रखो। कैसे करूँ, कैसे चलूँ, इस बोझ से हल्के होकर के ऊंची स्थिति पर जा नहीं सकते हो। इसलिए श्रीमत से संकल्प तक भी चलते चलो तो मेहनत से बच जाओगे।

मिलावट से भारीपन

कई बच्चों की मेहनत के भिन्न-भिनन पोज़ बाप-दादा देखते रहते हैं। सारे दिन में अनेक बच्चों के अनेक पोज़ देखते हैं। ऑटोमेटिक कैमरा है। साइन्स वालों ने सब वतन से ही तो कापी की है। कभी वतन में आकर देखना क्या-क्या चीजें वहाँ है। जो चाहिए, वह हाजिर मिलेगी। आप सब कहेंगे कि मँगाओ। बाप पूछते हैं वतन को देखना चाहते हो या रहना चाहते हो। (ट्रायल करेंगे) शक है क्या जो ट्रायल करेंगे? आप सबको बुलाने के लिए ही ब्रह्मा बाप रूके हुए हैं। तो क्यों नहीं सम्पन्न बन जाते हो। बहुत सहज ही सम्पन्न बन सकते हो, लेकिन द्वापर से मिक्स करने के संस्कार बहुत रहे हैं। पहले पूजा में मिक्स किया, देवताओं को बन्दर का मुँह लगा दिया। शास्त्रों में मिक्स किया जो बाप की जीवन-कहानी में बच्चे की जीवन-कहानी मिक्स की। ऐसे ही गृहस्थी में पवित्र प्रवृत्ति के बजाए अपवित्रता मिक्स कर दी। अभी भी श्रीमत में मन मत मिक्स कर देते हो। इसलिए मिक्स होने के कारण, जैसे रीयल सोना हल्का होता है और जब उसमें मिक्स करते हैं तो भारी हो जाता है ऐसे ही श्रीमत अर्थात् श्रेष्ठ मत बनाती हैं। मनमत मिक्स होने से भारी हो जाते हो। इसलिए चलने में मेहनत लगती है। अत: श्रीमत में मिक्स नहीं करो। सदा हल्के रहने से वतन की सभी सीन-सीनरियाँ यहाँ रहते हुए भी देख सकेंगे। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे इस दुनिया की कोई भी सीन स्पष्ट दिखाई देती है। सिर्फ संकल्प शक्ति अर्थात् मन और बुद्धि सदा मनमत से खाली रखो। मन को चलाने की आदत बहुत है ना। एकाग्र करते हो फिर भी चल पड़ता है। फिर मेहनत करते हो । चलाने से बचने का साधन है जैसे आजकल अगर कोई कन्ट्रोल में नहीं आता, बहुत तंग करता है, बहुत उछलता है, या पागल हो जाता है तो उनको ऐसा इन्जेक्शन लगा देते हैं जो वह शान्त हो जाता है। तो ऐसे अगर संकल्प शक्ति आपके कन्ट्रोल में नहीं आती तो अशरीरी भव का इन्जेक्शन लगा दो। बाप के पास बैठ जाओ। तो संकल्प शक्ति व्यर्थ नहीं उछलेगी बैठना भी नहीं आता है क्या? सिर्फ बैठने का ही काम दिया है, और कुछ नहीं। अभी तो समझ रहे हैं कि बहुत सहज है। बुद्धि का लगाम देकर के फिर ले लेते हो इस लिए मन व्यर्थ की मेहनत में डाल देता है। व्यर्थ मेहनत से छूट जाओ। बाप को बच्चों की मेहनत देख तरस तो पड़ेगा ना।

साहेब, बीबी और गुलाम

बाप कहते हैं हर बच्चा बाप के साथ तख्त पर आराम से बैठ जाओ। तख्तनशीन होकर अपनी स्थूल शक्तियों और सूक्ष्म को अर्थात् कर्मइन्द्रियों को और मन, बुद्धि संस्कार सूक्ष्म इन शक्तियों को भी आर्डर सें चलाओ। तख्तनशीन होंगे तो आर्डर चला सकेंगे। तख्त से नीचे उतर आर्डर करते हो इसलिए कर्मेन्द्रियाँ भी मानती नहीं हैं। आजकल काँटों की कुर्सी की भी हलचल कर रहे हैं। आपको तो तख्तनशीन की ऑफर है। फिर भी नीचे क्यों आ जाते हो। नीचे आना अर्थात् सर्वेन्ट बनना। किसका सर्वेन्ट? अपने ही अनेक कर्मेन्द्रियों के सर्वेन्ट के भी सर्वेन्ट हो जाते हैं। इसीलिए मेहनत करते हो। ईश्वरीय सर्वेन्ट बनो, ईश्वरीय सेवाधारी बनो। सर्वेन्ट के भी सर्वेन्ट नहीं बनो। ईश्वरीय सेवा तख्त पर बैठे हुए भी कर सकते हो। नीचे आने की जरूरत् नहीं। बाप अपने साथ बिठाना चाहते हैं लेकिन करते क्या हो? संगमयुगी साहेब और बीबी बनने की बजाए गुलाम बन जाते हो। तो सच्चे साहिब की सच्ची बीबीयाँ बनो। गुलाम नहीं बनो। जो सदा सबकी नज़र से बची हुई पर्दापोश में रहती, उन पर किसी की नज़र नहीं पड़ती। तो माया से पर्दापोश और साहेब के साथ बैठ जाओ। तो सभी गुलाम आपकी सेवा में हाज़र रहेंगे। समझा - क्या करना है? आज मेहनत से किनारा कर दो। सदा सहजयोगी तख्तनशीन बाप के साथ-साथ बैठ जाओ।

अभी गुजरात और इन्दौर आया है ना। तो पर्देपोश हो जाओ अर्थात् इनडोर हो जाओ। इन्दौर वाले तो सदा ‘इन-डोर’ रहते हैं ना। बाहर तो नहीं आते हैं ना। हरेक ज़ोन अपना-अपना विस्तार अच्छा ही कर रहे हैं। गुजरात ने हाल तो फुल कर दिया है अभी गुजरात वाले को फुल करो और जल्दी फिर वतन में आराम से बैठेंगे। अब तो समय के प्रमाण ब्रह्मा बाप बच्चों का आह्वान कर रहे हैं। गुजरात वाले क्या करेंगे? गुजरात वाले बड़े आवाज़ वाले माइक यहाँ लाओ स्थूल वाले माइक नहीं, चैतन्य माइक। ऐसे पॉवरफुल माइक के सेट लाओ जो प्रत्यक्षता का आवाज़ बुलन्द करें। अच्छा, इन्दौर ज़ोन क्या लावेगा! इन्दौर ज़ोन ऐसे पावरफुल टी.वी. सेट लाओ जिस द्वारा विश्व को विनाश काल स्पष्ट दिखाई दे और भविष्य उज्वल दिखाई दे। समझा, क्या करना है? ऐसे-ऐसे व्यक्तियों को तैयार करो - जिनके अनुभव की टी.वी. द्वारा दुनिया को विनाश और स्थापना का साक्षात्कार हो जाए। तो दोनों ही ज़ोन ऐसे सेट तैयार करके आना। ऐसे खुदाई खिदमतगार, सदा मेहनत से मुक्त, सदा युक्तियुक्त संकल्प और कर्म करने वाले, सदा बाप की श्रीमत प्रमाण हर संकल्प और कर्म करने वाले, सदा कहने और करने को समान करने वाले, ऐसे सदा बाप के साथी बच्चों को बाप-दादा की याद, प्यार और नमस्ते।

महीन पुरुषार्थी भव

(अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य विशेष टीचर्स प्रति)

टीचर्स का विशेष पुरुषार्थीर् किस बात का होना चाहिए? सर्विसएबुल बच्चों का महीन पुरूषार्थ क्या है? महीन पुरूषार्थ है - संकल्प की भी चैंकिग। संकल्प में याद और सेवा का बैलेन्स रहा! हर संकल्प पावरफुल रहा। सर्विसएबुल बच्चों के संकल्प कभी भी व्यर्थ नहीं होने चाहिए क्योंकि आप विश्व कल्याणकारी हो, विश्व की स्टेज पर एक्ट करने वाले हो। आपको सारी विश्व कॉपी करती है। अगर आपका एक संकल्प भी व्यर्थ हुआ तो सभी उसको कॉपी करने वाले हैं। अपने प्रति नहीं किया लेकिन अनेकों के प्रति निमित्त बन गए। जैसे आपको सेवा के लिफ्ट की गिफ्ट मिलती है, अनेकों की सेवा का शेयर मिल जाता है। वैसे ही अगर कोई ऐसा कार्य करते हो तो अनेकों को व्यर्थ सिखाने के निमित्त भी बन जाते हो। इसलिए अब व्यर्थ का खाता समाप्त। जैसे आजकल साइन्स के साधनों द्वारा मन की एकाग्रता को चैक करते हैं ना। लण्डन वा अन्य स्थानों पर किया ना - ये हैं साइन्स के साधन। लेकिन आपको हर कदम में अपनी चैकिंग के साधन साथ-साथ रखने चाहिए। जैसे वह चैकिंग के औज़ार साथ में रखते हैं और चैक करते समय ऊपर डालते हैं। सर्विसएबुल बच्चों को हर समय चैकिंग का साधन साथ रखना चाहिए। तो टीचर्स बनना कोई छोटी-सी बात नहीं है, नाम ही नहीं है लेकिन नाम के साथ काम भी है।

सर्व खज़ानों की इकॉनामी का बजट बनाओ।

सविसएबुल बच्चों का व्यर्थ कभी नहीं चलना चाहिए। अगर आप ही यह कहें कि व्यर्थ संकल्प आते हैं तो और क्या करेंगे? और तो विकल्प में चले जायेंगे। ऐसे तो हरेक अटेन्शन रखता ही है लेकिन अब महीन अटेन्शन चाहिए। संकल्प से भी सेवा हो। अगर संकल्प शक्ति को सेवा में बिज़ी कर देते हो तो व्यर्थ ऑटोमेटिकली खत्म हो जायेगा। जैसे आजकल के यूथ ग्रुप को कोई-न-कोई कार्य में बिज़ी करने की कोशिश करते हैं जिससे युवा शक्ति नुकसानकारक कार्य में न चली जाए। कहीं बारिश का पानी व्यर्थ जाता है तो बाँध बनाकर व्यर्थ भी सफल कर देते हैं। ऐसे संकल्प शक्ति जो व्यर्थ चली जाती है उसको सेवा में बिज़ी रखेंगे तो व्यर्थ के बजाए समर्थ हो जायेगा। संकल्प, बोल, कर्म व ज्ञान की शक्तियाँ कुछ भी व्यर्थ न जानी चाहिए। तो ऐसे हर संकल्प, कर्म, बोल और सर्व शक्तियों की इकॉनामी करने वाले हो ना? वैसे भी लौकिक रीति से अगर इकॉनामी वाला घर न हो तो ठीक रीति से चल नहीं सकता। ऐसे ही अगर निमित्त बने हुए बच्चे इकॉनामी वाले नहीं हैं तो सेन्टर ठीक नहीं चलता, वह हुई हद की प्रवृत्ति यह है बेहद की। तो चैक करना चाहिए एक्स्ट्रा खर्च क्या-क्या किया - संकल्प में, बोल में, शक्तियों में। फिर उसको चेन्ज करना चाहिए। महीन पुरूषार्थ है सर्व खज़ानों की इकॉनामी का बजट बनाना और उसी के अनुसार चलना। बजट बनाना तो आता है ना? जैसे स्थूल खज़ाने का पोतामेल बनाते हो, ऐसे यह सूक्ष्म पोतामेल बनाओ। निमित्त बने हो, त्याग किया है उसका यह प्रत्यक्षफल है जो सेन्टर मिल गया, जिज्ञासु मिल गये, अभी और आगे बढ़ो। जितना किया है उतना मिला है। अभी फिर पूजा और भक्त आपके चरणों पर झुकें। अभी यह प्रत्यक्ष फल दिखाओ। बाप-समान टाइटिल भी मिल गया, प्रकृति भी यथाशक्ति दासी होती रहती है अभी इससे भी आगे चलो। यह प्रत्यक्षफल प्राप्त ज़रूर होता है लेकिन इसे स्वीकार नहीं करना। अब संकल्प से भी सेवाधारी बनो। वाचा सेवा तो सात दिन के कोर्स वाले भी करते हैं। कर्मणा सेवा भी सब करते हैं लेकिन आपकी विशेषता है मन्सा सेवा। इस विशेषता को अपना कर विशेष नम्बर ले लो। सभी सन्तुट तो रह रहे हो और सन्तुष्ट रहना भी है। जहाँ डायरेक्शन मिले उसी अनुसार चलना। यह भी अनेकों को पाठ सिखाने के निमित्त बन जाते हो। प्रैक्टिकल पाठ सिखाने वाली हो, मुख से नहीं। जम्प तो अच्छा लगाया है अभी क्या करना है? जम्प के बाद की स्टेज है उड़ने की।

अभी व्यक्त में रहते अव्यक्त में उड़ते रहो। उड़ना सीखो। जम्प के बाद उड़ने की स्टेज है। जम्प तो सेकेण्ड में लगा दिया। अभी का पुरूषार्थ ही है उड़ने का। सदा अव्यक्त वतन में विदेही स्थिति में उड़ते रहो। अशरीरी स्टेज पर उड़ते रहो। जम्प के बाद भी तो स्टेज है ना अभी उस स्टेज पर चलो।

‘‘अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात’’ (इन्दौर और गुजरात ज़ोन)

1. बाप द्वारा की गई महिमा का सुमिरण करने से समर्थ स्टेज का अनुभव - सदा अपने भाग्य की महिमा के गीत गाते रहते हो? जैसे स्थूल साधारण गीत भी गाते हैं तो कितना खुशी में आ जाते हैं। भक्तिमार्ग में कीर्तन करते हैं तो भी कितना खुश होते हैं। तो आप सभी भी बाप द्वारा की गई महिमा के गीत सदा गाते रहो। पहले हम क्या थे और बाप ने क्या बना दिया, उसी का सुमिरण करते सदा हर्षित रहो। इसी सुमिरण में समर्थी समाई हुई है। क्योंकि बाप ने समर्थ बनाया है ना। जो स्वप्न में बनना न था, वह साकार स्वरूप में अनुभव कर रहे हो इसीलिए बाप-दादा सभी बच्चों को लकी सितारे कहते हैं। तो लकी सितारे हो ना?

सितारा कहा ही उसको जाता है जो सदा जगमगाता रहे। जो बाप द्वारा शक्तियाँ व ज्ञान का खज़ाना मिला है उसमें जगमगाते रहो। ऐसे हो? बादलों में छिपने वाले तो नहीं हो? सदा अपनी चमक से विश्व को रोशन करने वाले हो ना? खुशी-खुशी से पुरानी दुनिया से किनारा कर लिया है। अब पुरानी दुनिया के निवासी नहीं हो, संगम युगी निवासी हो। तो पुरानी दुनिया से किनारा हो गया है या करना है - क्या समझते हो? कोई पुराने मित्र से मिलने के लिए पुरानी दुनिया की चीज़ें खरीदने तो नहीं जाते हो। आजकल बार्डर पर खड़े हुए भी कभी-कभी जानबूझ कर दुश्मन के देश में चले जाते हैं। आप बार्डर क्रास कर पुरानी दुनिया में चले तो नहीं जाते हो? नई दुनिया सामने खड़ी है, पुरानी दुनिया का किनारा कर चुके हो। संकल्प से भी पुरानी दुनिया में नहीं जाना। गये तो फँस जायेंगे। इसलिए सदा अपने को संगमयुगी समझो। संगम पर बाप याद आयेगा, वर्सा याद आयेगा।

पुरूषार्थ में स्व की उन्नति और सेवा की भी वृद्धि - दोनों का बैलेन्स चाहिए। दोनों के प्लैन्स बनाते रहते हो? अभी क्या प्लैन बनाया है? (उज्जैन में कुम्भ मेले पर आध्यात्मिक मेला) मेले की धूमधाम से तैयारी कर रहे हो। अच्छा है। लेकिन उसमें यह विशेष अटेन्शन रखना - मेले का वातावरण ऐसा शान्तमय हो जो हलचल से घमसान की वृत्ति लेकन आने वाले महसूस करें कि कोई भिन्न स्थान पर आये हैं। चारों ओर आवाज़ हो और आपके पास ऐसा अनुभव करें जैसे शान्ति के कुण्ड में पहुँच गये। बाहर जो ड्युटी पर हो वह भी शान्ति के वरदानी होकर रहें। आपके शान्ति के वायब्रेशन्स उनको शान्त कर दें। इससे सारे मेले में यह आवाज़ हो जायेगा कि दो मिनट के लिए गये लेकिन अच्छी ही शान्ति का अनुभव करके आये। जैसे शुरू-शुरू में स्थापना के समय जो आते थे, तो ओम की ध्वनि से महसूस करते थे कि यह कोई शान्ति का स्थान है। ऐसे इस मेले में शान्ति का अनुभव करें। मेले में जो आते हैं उनका मूड ही कुछ ओर होता है। वह मेला तो है जैसे बाज़ार, उसी रूप से अशान्ति से आते हैं ऐसे को शान्ति का अनुभव कराना बहुत जरूरी है जिससे विशेषता लगे।

सभी को स्नेह से निमंत्रण जरूर देना - आपका स्नेह देख करके सब खुश होंगे। कोई कैसे भी बोले लेकिन आप लोग शान्ति से, स्नेह से बोलेंगे तो उसका भी प्रभाव पड़ेगा। समय प्रति समय स्टेज पर आये हुए देख अन्दर से मानते हैं। अभी सबकी ऑखें थोड़ा नीचे हुई हैं, सिर नहीं झुका है। अभी साँडो मुआफिक ऐसे नहीं देखते हैं। आखिर तो सब झुकने वाले हैं। सबका झुकना अर्थात् जय-जयकार होना। फिर क्रान्ति के बाद शान्ति हो जायेगी। अभी झुकने का पहला पोज़ हुआ है, आखिरिन पाँव तक झुकेंगे।

2. रहम दिल बाप के रहम दिल बच्चों का कर्त्तव्य है - सभी को ठिकाना देना :- सभी ने भिखारीपन की जीवन का भी अनुभव किया और अब मालामाल बन गये हो। मालामाल बनने वाले बच्चे किसी को भी देखेंगे तो रहम आयेगा कि इस आत्मा को ठिकाना मिल जाए। इनका भी कल्याण हो जाए। तो जो भी सम्पर्क में आये उसे बाप का परिचय जरूर देना। जैसे कोई घर में आता है तो उसे पानी तो पूछा जाता है ना! अगर ऐसे ही चला जाए तो बुरा समझते हैं ना! ऐसे ही सम्पर्क में जो आये तो उसे बाप के परिचय का पानी जरूर पूछो। थोड़ा सुनाया तो पानी पूछा - सप्ताह कोर्स कराया तो ब्रह्मा भोजन कराया। कुछ-न-कुछ देना जरूर। क्योंकि दाता के बच्चे हो।